जिस बात की संभावना थी वही हुआ और विपक्ष का सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव संसद में गिर गया | विपक्ष यह कह रहा था कि यह अविश्वास प्रस्ताव प्रधानमंत्री को संसद में मणिपुर के मामले में बोलने के लिए बाध्य करना है क्योंकि नियमों के अंतर्गत जब भी विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है तो प्रधानमंत्री को उसका जवाब देना आवश्यक होता है | लेकिन विडंबना देखिए कि प्रधानमंत्री के मणिपुर के ऊपर बोलने के पहले ही पूरा विपक्ष प्रधानमंत्री के भाषण का बहिष्कार करके संसद से बाहर चला गया | प्रधानमंत्री ने मणिपुर के ऊपर बोला और खूब बोला, उन्होंने मणिपुर की घटना की निंदा करते हुए यह कहा कि पूरा देश मणिपुर के साथ है और जो भी घटना के दोषी हैं उनको कठोर दंड दिया जाएगा इसके लिए सरकार संपूर्ण प्रयास कर रही है | साथ ही प्रधानमंत्री ने विपक्ष को इतिहास की भी याद दिलाई और बताया कि उनके समय में मणिपुर में क्या होता था |प्रधानमंत्री ने विपक्ष को याद दिलाई थी जब मणिपुर में विपक्ष का शासन था तो कैसे सरकारी ऑफिसों में आतंकवादियों के डर से महात्मा गांधी की तस्वीर तक नहीं लगाई जाती थी और कैसे स्कूलों में बच्चों को राष्ट्रगान गाने से रोका जाता था | कैसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर बम फेंका गया था, आदि मणिपुर के बारे में प्रधानमंत्री ने विपक्ष को उसको उसका इतिहास याद दिलाया और साथ ही यह भी कहा कि पूर्वोत्तर में जब विपक्ष का शासन था तब कैसे संपूर्ण नार्थ ईस्ट उग्रवाद की आग में जल रहा था|
विपक्ष के नेताओं ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव मणिपुर के ऊपर सरकार को घेरने के लिए लाया था किंतु देश का बहुमूल्य समय मणिपुर पर चर्चा करने की बजाय अनाप-शनाप बातों में नष्ट कर दिया और कई बार संसदीय मर्यादा को भी तार-तार कर दिया | विपक्ष के कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री की तुलना रावण से की , तो ही कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री की तुलना धृतराष्ट्र से की |एक नेता ने तो भारत माता का नाम लेकर बड़ी-बड़ी अनर्गल बातें कहीं|
चर्चा के आखिर में प्रधानमंत्री ने अपने तेजस्वी भाषण से विपक्ष की एक- एक बातों का केवल जोरदार जवाब दिया बल्कि बल्कि विपक्ष की बोलती ही बंद कर दी, हालत यह हो गई कि प्रधानमंत्री का पूरा भाषण सुनने का साहस भी विपक्ष नहीं कर सका और प्रधानमंत्री के भाषण के बीच में ही पूरा विपक्ष बाहर चला गया|
जब संसद भवन के बाहर पत्रकारों ने जब विपक्षी नेताओं से यह पूछा कि आप लोग प्रधानमंत्री का भाषण बीच में ही छोड़कर संसद से बाहर क्यों आ गए तो विपक्षी नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री मणिपुर के ऊपर नहीं बोल रहे हैं इसलिए हम लोग उनके भाषण का बहिष्कार संसद से बाहर आ गए | किंतु अभी तो प्रधानमंत्री ने अपना भाषण समाप्त भी नहीं किया था, तो फिर विपक्ष ने यह कैसे मान लिया कि प्रधानमंत्री मणिपुर के ऊपर कुछ नहीं बोलेंगे? क्या अब विपक्ष प्रधानमंत्री के बोलने का क्या क्रम होगा, यह भी निश्चित करेगा? क्या प्रधानमंत्री विपक्ष की प्राथमिकता के अनुसार अपना भाषण देंगे? कुल मिलाकर पूरा देश यह जान चुका है कि विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य न तो प्रधानमंत्री को मणिपुर के ऊपर बोलने के लिए बाध्य करना था और न ही विपक्ष को मणिपुर की कोई चिंता थी, बल्कि अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य एकमात्र राजनीतिक था और इसी के बहाने मोदी जी के विरुद्ध गठबंधन बनाने का प्रयास था!
विपक्ष को भले ही इस विश्वास प्रस्ताव से कुछ भी हासिल नहीं हुआ हो किंतु प्रधानमंत्री ने इस मौके का भरपूर उपयोग किया | उन्होंने न केवल विपक्ष के आरोपों की हवा निकाल दी बल्कि अपनी सरकार की उपलब्धियां भी गिनाई| उन्होंने तुलनात्मक लहजे में यह बताया कि पहले विपक्षी सरकारों में क्या होता था और अब क्या होता है | प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में एक और महत्वपूर्ण बात कही जिस पर न केवल भारत वर्ष के लोगों को बल्कि संपूर्ण विश्व को भी विश्वास है और वह यह कि आगामी 5 सालों में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी और जिस तरह से भारत विकास कर रहा है उससे यह बात कठिन नहीं लगती है! प्रधानमंत्री के जोरदार भाषण के बाद विपक्ष के नेता सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के अपने निर्णय पर पछता रहे होंगे और उन्हें इसका भी आभास हो गया होगा कि 2024 में भी तीसरी बार श्री नरेंद्र मोदी का सरकार में आना निश्चित है| कुल मिलाकर विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के ऊपर यह कहावत चरितार्थ होती है कि “खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोड़ा 12 आने का”