भारत में समान नागरिक संहिता समय की मांग है

 

दुनिया के कई  बड़े देशों में समान आचार संहिता (Uniform Civil Code) है | यहां गौर करने वाली बात यह है कि भारत में क्रिमिनल लॉ  तो सबके लिए समान है किंतु सिविल लॉ सबके लिए समान नहीं है, यानी हिंदुओं के लिए सिविल लॉ अलग और अन्य मजहब के लिए अलग सिविल लॉ है| समान नागरिक संहिता की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि इसके नहीं होने से समाज के बहुत बड़े वर्ग खासतौर से महिलाओं को अपने कई अधिकारों से वंचित होना पड़ता है और समान नागरिक संहिता लागू हो जाने के बाद भारत के सभी नागरिकों को सिविल मामले में समान अधिकार प्राप्त हो जाएंगे | समान नागरिक संहिता लागू हो जाने के बाद समाज के सभी वर्गों को संपत्ति में अधिकार, उत्तराधिकार संबंधी अधिकार, और गुजारा भत्ता संबंधी अधिकार सभी को समान रूप से प्राप्त होंगे| इसके अलावा एक समान नागरिक संहिता लागू हो जाने के बाद बहु-विवाह पर रोक लग जाएगी और तलाक संबंधी कानून सबके लिए समान हो जाएंगे|  निश्चित रूप से अगर सरकार समान नागरिक संहिता लागू करती है तो यह सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम होगा |

इसके अलावा समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद देश में सभी निवासियों के अंदर राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा होगी | इसका सबसे बड़ा उदाहरण जम्मू और कश्मीर है यहां धारा 370 और 35-A हटने के बाद जम्मू कश्मीर में, खासतौर से कश्मीर घाटी में राष्ट्रीय एकता की भावना प्रबल हुई है | धारा 370 और 35-A हटाने के पहले 14 अगस्त को कश्मीर घाटी में जहां पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते थे वही अब कश्मीर घाटी के लोग 15 अगस्त को शान से हजारों की संख्या में तिरंगा यात्रा निकाल रहे हैं| इससे यह सिद्ध होता है कि जम्मू-कश्मीर में विशेष कानून का होना या देश के अन्य भागों के समान कानून का नहीं होना वहां लोगों के मन में अलगाववाद का एक बहुत बड़ा कारण था!

कुछ राजनीतिक दलों के नेता  एक समान नागरिक संहिता को मजहबी मामलों में हस्तक्षेप मानते हैं किंतु ऐसे नेताओं के तर्कों में कोई दम नहीं है क्योंकि सभी मजहब के लोग भारत भारत माता की ही संतान है. ना कोई बड़ा है और ना ही कोई छोटा | ऐसे में एक बेटे के लिए अलग कानून और दूसरे बेटे के लिए अलग कानून नहीं हो सकता |

भारत न केवल कानूनी रूप से बल्कि स्वभावतः पंथनिरपेक्ष देश है और एक पंथनिरपेक्ष देश में सब को सामान्यतया अपने – अपने मजहब के अनुसार आचरण करने का पूरा अधिकार है, किंतु एक पंथनिरपेक्ष देश में मजहब के आधार पर अलग-अलग कानून का होना कहीं से भी न्याय संगत नहीं हो सकता |

हालांकि, भारतवर्ष के नार्थ ईस्ट में रहने वाली कुछ जनजातियों में आज भी बहु-विवाह काफी प्रचलित है और ऐसे में सरकार को इन जनजातियों को समान नागरिक संहिता के दायरे से अलग रखना चाहिए क्योंकि इन जनजातियों के लोग अपनी परंपराओं से बहुत गहरा लगाव रखते हैं और समान नागरिक संहिता के नाम पर उनको अपनी परंपराओं को छोड़ने के लिए दबाव डालना उचित नहीं होगा |

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