सनातन धर्म क्या है?

What is Sanatan

सनातन धर्म ( यहाँ धर्म का अर्थ मजहब या संप्रदाय नहीं बल्कि जीवन पद्धति है ) का अर्थ होता है जो शाश्वत और सदा बना रहने वाला हो | दूसरे शब्दों में जिसका न आदि हो और न ही अंत वह सनातन है | सनातन धर्म सृष्टि के आरम्भ से है और जब तक यह सृष्टि रहेगी तब तक सनातन धर्म भी रहेगा | सनातन धर्म के सिद्धांत सम्पूर्ण मानवजाति के कल्याण और सम्मान पर आधारित है जिसका पालन न केवल सनातनी बल्कि ईश्वर भी करते हैं | सनातन धर्म के सिद्धांत विश्व के वे अनमोल रत्न है जो जिसका पालन करने से सम्पूर्ण धरती स्वर्ग से सामान हो जाएगी |

वसुधैव कुटुम्बकम्: (सम्पूर्ण पृथ्वी है एक परिवार के सामान )

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |भारतीय सनातन धर्म इतना व्यापक है कि यहाँ सम्पूर्ण पृथ्वी को ही परिवार माना जाता है | सनातन धर्म के अनुसार जो लोग कहते हैं कि यह मेरा है और यह पराया है ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है किन्तु इसके विपरीत जो उदारचरित वाले व्यक्ति होते है उनके लिए तो यह सम्पूर्ण पृथ्वी ही एक परिवार के सामान हो |

आत्मवत् सर्वभूतेषु: ( सम्पूर्ण प्राणी मात्र में एक ही आत्मा का निवास है)

सनातन धर्म “आत्मवत् सर्वभूतेषु” अर्थात सम्पूर्ण जोवों के अंदर एक ही आत्मा के अस्तित्व को मानता है और इसलिए सनातनी धर्मानुयायी सभी प्राणियों के ऊपर दया की बात करते हैं | जैसे खुद को चोट लगाने पर कष्ट का अनुभव होता है वैसा ही कष्ट का अनुभव सभी प्राणियों को भी चोट लगने पर होता है, इसलिए  किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देना चाहिए | सनातन धर्म में सभी मनुष्यों को बराबर समझा जाता है और यह माना जाता है कि मनुष्य केवल अपने कर्मो से ही महान बनता है | सनातनी धर्मावलम्बी छुआ -छूत या ऊंच -नीच को नहीं मानते हैं | आखिर जो धर्म सम्पूर्ण प्राणियों में एक ही आत्मा के अस्तित्व को मानता हो वह मनुष्यों में  छुआ -छूत या ऊंच -नीच के आधार पर भेद कर भी कैसे सकता है |

एक सम्पूर्ण समावेशी विचारधारा:

सनातन धर्म एक पूर्ण समावेशी धर्म है और ये मनाता है कि “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति” अर्थात सत्य या ईश्वर एक है जिसे पंडित लोग भांति – भांति से बर्णन करते हैं | सनातन धर्म में दर्जनों पंथ और संप्रदाय है और सनातन धर्म संस्कृति यह मानती है कि सभी पंथ और संप्रदाय सच्चे और ईश्वर के पास पहुंचने के विभिन्न मार्ग हैं | जैसे विभिन्न नदियाँ ड़ेढे – मेढ़े रास्ते से होते हुए अंत में समुद्र में ही गिरती हैं ठीक वैसे ही सभी पंथ और संप्रदाय अंत में ईश्वर के पास ही पहुंचते है | सनातन धर्म में जो ईश्वर को साकार मानता है वह भी सनातनी और जो ईश्वर को निराकार मानता है वह भी सनातनी है | उसी तरह जो “अद्वैतवाद” अर्थात जो ईश्वर और जीव दोनों को एक मानता है वह भी सनातनी है और जो “द्वैतबाद” अर्थात जो ईश्वर और जीव को अलग- अलग मानता है वह भी सनातनी है |

मातृवत परदारेषु ( परायी स्त्री माता के सामान )

सनातन धर्म में स्त्रियों का जितना सम्मान और ऊँचा स्थान है उतना और किसी भी दूसरे धर्म या संस्कृति में नहीं है | सनातन धर्म का ये सिद्धांत है कि परायी स्त्री माता के के समान होती है | सनातन धर्म में स्त्रियों के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि यहाँ पहले देवियों का नाम आता है फिर देवताओं का, जैसे सीता – राम, लक्ष्मी – नारायण, राधा – कृष्ण आदि | सनातन धर्म परंपरा में तो स्त्रियों की देवी मानकर पूजा तक की जाती है और यहाँ तक कहा गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ है “जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं”| सनातन संस्कृति पृथ्वी, नदियों और मातृभूमि को भी माता मानती है | आज जो लोग यह कहते हैं कि सनातन धर्म में स्त्रियों को समानता और बराबरी का अधिकार नहीं है उनकी बुद्धि पर सिर्फ तरस ही खाया जा सकता है |

परद्रव्येषु लोष्ठवत ( पराया धन मिट्टी के सामान)

भारतीय संस्कृति में एक तरफ तो परायी स्त्री को जहाँ माता कहा गया है वही पराये धन को एक मिट्टी के ढेले के सामान कहा गया है और हर सच्चा सनातनी आज भी दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के सामान ही समझता है | आज के समय में जहाँ इंसान थोड़े से धन के लिए किसी की जान लेने से भी नहीं हिचकिचाता वही सनातन धर्म का दूसरे के धन को मिट्टी के समान मानने वाला सिद्धांत समाज के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है |

कर्मफल का सिद्धांत:

सनातन धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है और यह मानता है कि मनुष्य को उसके कर्मो (पुण्य या पाप कर्मों ) का फल इस जन्म में या अगले जन्म में अवश्य भोगना पड़ता है | सनातन धर्म यह मानता है कि हमारा यह वर्तमान जीवन हमारे पूर्व जन्म के कर्मो का परिणाम है और हमारा अगला जन्म हमारे इस बर्तमान जन्म में किये गए कर्मो के अनुसार निर्धारित होगा | कर्मफल का ये सिद्धांत सनातनी धर्मावलंबियों को पुण्य कर्म करने को प्रोत्साहित करता है और पाप कर्म करने से रोकता है क्योंकि उनका ये पूर्ण विश्वास होता है की अगर वे पाप कर्म करेंगे तो उसका फल उन्हें अवश्य भोगना पड़ेगा |

मातृ देवो भव: पितृ देवो भव:

सनातन धर्म संस्कृति माता – पिता को देवता के समान मानती है और उनकी आज्ञा और सेवा को जीवन का परम सौभाग्य मनाती है | इसके सबसे बड़े उदाहरण श्रवण कुमार और भगवन राम हैं | श्रवण कुमार ने जहाँ अपने अंधे माता – पिता को कांवर में बैठाकर उन्हें अपने कंधे पर रखकर पैदल ही तीर्थयात्रा करायी तो वहीं भगवान् राम ने अपने पिता की आज्ञा मानकर अयोध्या का राजसिंहासन छोड़कर १४ वर्ष के लिए बनवास को चले गए | आज अपने को विकसित राष्ट्र कहने वाले पचिमी देशों में बुजुर्ग माता- पिता अपने संतानों द्वारा देखभाल नहीं करने के कारण जहाँ बृद्धाआश्रम में रहने को विवश हैं तो वहीं सनातन धर्म संस्कृत माता और पिता की सेवा को अपने जीवन का कर्त्तव्य और सौभाग्य मानती है |

सनातन धर्म की विशेषताएं इतनी हैं की यदि इसे लिखा जाय तो एक पूरी किताब बन जाएगी | सृष्टि के आरम्भ में केवल सनातन धर्म ही था और जब तक यह सृष्टि रहेगी तबतक सनातन धर्मवलम्बी इस धरती पर रहेंगे क्योंकि प्रकति के सिद्धांतो के अनुसार नष्ट वही होता है जिसका जन्म होता है और सनातन धर्म कभी जन्मा ही नहीं बल्कि वह सृष्टि में साथ ही धरती पर आया, इस लिए यह कभी नष्ट नहीं हो सकता | भारत के मध्यकाल में लाखो सनातनी धर्मवलम्बियों ने तलवार से अपने सर तक कटा दिये किन्तु किन्तु विदेशी आक्रांताओं के धर्म परिवर्तन के प्रस्ताव को ठुकरा दिया | जब गुलामी के दौर में क्रूर विदेशी आक्रांता भी जिस सनातन धर्म को नहीं मिटा सके उसे भला कौन मिटा सकता है |

 

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