देश में अधिकांश राज्यों में कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चे अपने स्कूल के बस्तों के वजन से दबे हुए हैं | रोज सुबह – सुबह जो बच्चे बस से स्कूल जाते हैं या पैदल स्कूल जाते है, उनके साथ- साथ उनके माता या पिता उन्हें बस तक या स्कूल तक छोड़ने जाते है और बस्ते को खुद ही ले लेते हैं क्योंकि बस्ते का वजन इतना ज्यादा होता है कि बच्चा उसे ज्यादा देर तक ले कर नहीं चल सकता | जो माता – पिता बस्ता उठाते हैं वे भी ज्यादा वजन के कारण उसे ढोने में कठिनाई का अनुभव करते हैं लेकिन वे चाहकर भी कुछ कर नहीं पाते | माता – पिता केवल बस तक या स्कूल के गेट तक ही अपने बच्चे के बस्ते को ले जाते हैं | स्कूल के अंदर तो बच्चा खुद ही अपने बैग को उठता है | और इसका दुष्प्रभाव उसके शारीरिक और मानसिक स्वस्थ्य पर पड़ता है | बस्ते के बजन से जहाँ कुछ बच्चे झुककर चलते हैं और चिड़चिड़े हो जाते हैं तो वहीं कुछ बच्चे अपने कंधों और पीठ में गंभीर दर्द की शिकायत करते हैं | बच्चों के बस्ते के ज्यादा वजन के पीछे कई कारण है जिन्हे शिक्षा मंत्रालय को दूर करना चाहिए जिससे बच्चों के बस्ते का वजन हल्का हो सके और उनका बचपन बस्ते के भारी बोझ तले दब न जाय |
सी. बी. एस. ई. बोर्ड की बजाय प्राइवेट स्कूलों की अपनी किताबें:
ज्यादातर प्राइवेट स्कूल सी बी एस ई बोर्ड की किताबों की बजाय अपनी खुद की किताबें चलाते हैं जो सी बी एस ई बोर्ड किताबों की तुलना में कई गुना ज्यादा महँगी होती हैं | प्राइवेट स्कूलों की किताबें सी बी एस ई बोर्ड की किताबों की तुलना में ज्यादा मोटी होती हैं और उनके पन्ने ज्यादा मोटे तथा चिकने होते हैं जिससे उनकी मनमाना कीमत लिया जा सके | इसके अलावा ज्यादातर प्राइवेट स्कूल मुख्य विषयों के अतिरिक्त अपनी तरफ से कई किताबे अलग से भी चलाते हैं जिससे बस्ते का वजन ज्यादा बढ़ जाता है और साथ ही बच्चो के कोमल मष्तिष्क पर पढ़ाई का आत्याधिक दबाव बढ़ जाता है | यहाँ यह बात महत्वपूर्ण है कि सी बी एस ई बोर्ड की किताबें इतनी अच्छी होती हैं कि उसे संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र भी पढ़ते हैं | तो फिर उसे प्राइवेट स्कूल आखिर क्यों नहीं पढ़ाते ? इसके पीछे प्राइवेट स्कूलों द्वारा अपनी किताबों को बेचकर मोटा मुनाफा कमाना सबसे बड़ा कारण है | जो सी बी एस ई बोर्ड की किताबें और कापियां मात्र 10,00 से 1,500 रूपये में आ जाती हैं तो वहीं ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों की किताबें और कापियां औसतन 50,00 रुपये से कम में नहीं आती हैं और ज्यादातर माता – पिता न चाहते हुए भी हर साल प्राइवेट स्कूलों की महँगी किताब और कापियों को खरीदने के लिए बाध्य होते हैं |
केवल सीबीएसई बोर्ड की किताबें ही चलें:
सरकार को सभी प्राइवेट स्कूलों में सी बी एस ई बोर्ड की किताबों को ही पढ़ाने के लिए कदम उठाने चाहिए | इसके लिए प्राइवेट पब्लिशर्स को सी बी एस ई बोर्ड की किताबें छापने की अनुमति देनी चाहिए जिससे सभी प्राइवेट स्कूल के छात्रों को समय पर सी बी एस ई बोर्ड की किताबें मिल सके | किन्तु यदि किसी कारण से सभी प्राइवेट स्कूलों में सी बी एस ई बोर्ड की किताबों की पढाई संभव नहीं हो तो सरकार को कुछ कदम उठाने चाहिए |
हर साल नयी किताबें और चैप्टर बदलने पर रोक लगे :
ज्यादातर स्कूल हर साल किताबों के पब्लिशकर्ता और उनके कुछ चैप्टर बदल देते है जिससे कि उन किताबों को कोई और छात्र दुबारा प्रयोग कर नहीं सके और उसे स्कूल से ही नयी किताबें खरीदनी पड़े | शिक्षा मंत्रालय को हर साल किताबों या कुछ पाठों को बदलने पर रोक लगनी चाहिए और केवल स्कूलों से ही नयी किताबों को खरीदने की अनिवार्यता को समाप्त कर देना चाहिए | इसके अलावा जो छात्र चाहे उनको पुरानी किताबों से पढ़ने की अनुमति देनी चाहिए | सरकार को यह भी देखना चाहिए कि प्राइवेट स्कूलों की किताबों का स्तर छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल है या नहीं और जरुरत होने पर सरकार को इस सम्बन्ध में उचित दिशा निर्देश जारी करना चाहिए |
किताबें सह नोटबुक (Books Cum Notebook) पर रोक लगे:
आजकल कुछ प्राइवेट स्कूल किताब सह नोट बुक को अपना रहे है जिसमें छात्रों को प्रश्नों के उत्तर लिखने के लिए भी कहा जाता है | ऐसा इसलिए होता है कि उन किताबों को कोई दुबारा प्रयोग नहीं कर सके और हर साल प्राइवेट स्कूल नयी किताबें बेचकर मुनाफा कमा सके | सरकार को किताबों को सिर्फ पढ़ने के लिए ही प्रयोग करने की गाइडलाइन्स जारी करनी चाहिए जिससे छात्रों को किताबों में लिखना नहीं पड़े और उन किताबों को दूसरे छात्र भी पढ़ सके और उन्हें स्कूल से नयी किताबें नहीं खरीदनी पड़े |
अधिकतम 1500 रुपये से ज्यादा मूल्य की किताबें न हो:
अब समय आ गया है की शिक्षा मंत्रालय को प्राइवेट स्कूलों द्वारा बेचीं जाने वाली किताबों की कीमत तय कर देनी चाहिए | सरकार को यह अनिवार्य कर देना चाहिए कि सभी प्राइवेट स्कूल क्लास1 से क्लास 8 तक की किताबों के लिए अधिकतम 1500 सौ रूपया ही ले सकते हैं |
बस्ते का वजन बच्चे के वजन के 15% से ज्यादा न हो:
बच्चों को बस्तों के भारी बोझ से बचाने के लिए सरकार को सभी स्कूलों के लिए यह नियम बनाना चाहिए कि बस्ते का वजन छात्र के वजन के अधिकतम 15% से ज्यादा नहीं हो | उदाहरण के लिए मान लीजिये कक्षा 4 में पढ़ने वाले छात्र के वजन को अगर 25 किलोग्राम मान लिया जाय तो उसके बस्ते का वजन (25 का 15% ),अर्थात 3.75 किलोग्राम से ज्यादा नहीं हो | सरकार को स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह से हर कक्षा के लिए छात्रों का वजन निर्धारित करना चाहिए और उसके आधार पर बस्ते का वजन निश्चित करना चाहिए |