भारत में निचली अदालतों में लगभग 3 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं और हर साल लाखों मामलों की संख्या बढ़ जाती है| देश में लोग आम बातचीत में इस बात को कहते हैं की दीवानी के मामले को पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं कई बार तो जिस दीवानी के मुकदमे को पिता लड़ता है और पिता के बाद बेटा लड़ता है और बेटा के बाद पोता भी उस मुकदमे को लड़ता है तब भी अदालत उस मुकदमे का फैसला नहीं कर पाती|
यह कितना त्रासदी पूर्ण है कि कोई व्यक्ति दीवानी के मुकदमे में न केवल अपना दशकों का समय नष्ट करता है बल्कि इसके लिए अपनी मेहनत की कमाई भी खर्च करता है| यहां तक कि कई बार उस व्यक्ति की कई पीढ़ियां भी उस मुकदमे को लड़ती है तब भी दीवाने के मामले का फैसला अदालत नहीं कर पाती हैं |अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या दीवानी के मुकदमे जल्दी हल नहीं हो सकते? आखिर ऐसा क्यों होता है कि दिवाली के मामले में अदालतें तारीख पर तारीख देती जाती हैं और ऐसा ही सालों साल चलता रहता है?
हाल ही में देश के गृह मंत्री श्री अमित शाह ने संसद में Indian Panel Code, Indian Evidence Act और PRCP में आमूल-चूल बदलाव के लिए नए विधेयक पेश किये हैं | इन विधेयकों के पास को जाने के बाद देश की न्याय व्यवस्था में न केवल क्रांतिकारी परिवर्तन होगा बल्कि अपराध के मामले में न्याय के लिए जनता को सालों साल प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी और शीघ्रता से न्याय मिल सकेगा | यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि दीवानी के मामलों की तुलना में अपराध के मामले अत्यधिक पेचीदा होते हैं और जब अपराध के मामलों की जल्दी सुनवाई हो सकती है, और उनका जल्दी निपटारा हो सकता है तो फिर दीवानी के मामलों का जल्दी निपटारा क्यों नहीं हो सकता?
अब यह समाय की मांग है कि भारत सरकार को नयी भारतीय न्याय संहिता बिल की तरह ही,नयी भारतीय दीवानी न्याय व्यवस्था संबंधित विधेयक भी संसद में पेश करना चाहिए जिसमें यह प्रावधान हो कि अदालतों द्वारा दीवानी के मामलों का फैसला अधिकतम 3 साल में करना अनिवार्य हो| इससे न केवल निचली अदालतों में मुकदमों का बोझ कम होगा बल्कि देश की करोड़ों जनता का बहुमूल्य समय और उनकी मेहनत का पैसा भी बचेगा | इसके साथ ही केंद्र सरकार को अब यह भी गंभीरता से बिचार करना चाहिए कि क्या दीवानी के साधारण मामलों में कृतिम बुद्धिमत्ता ( Artificial Intelligence ) का उपयोग किया जा सकता है? जिससे दीवानी के मामलों का जल्दी निपटारा हो सके |
हालांकि अगर सरकार संसद में ऐसा कोई विधायक लाती है तो कुछ लोग जो न्यायिक पेशा से जुड़े हुए हैं, इस बिल का विरोध कर सकते हैं| वे यह तर्क दे सकते हैं कि अगर जल्दी-जल्दी मुकदमे का फैसला होने लगेगा तो तो फिर उनकी रोजी-रोटी कैसे चलेगी, क्योंकि उनकी आय का एक मात्र साधन उनके मुवक्किल द्वारा दिया गया फ़ीस ही होता है जो आमतौर पर वे उन्हें हर तारीख पर देते हैं और ऐसे में जब मुकदमे का फैसला जल्दी आ जाएगा तो फिर उनके घर का खर्चा कैसे चलेगा| इन बातों में थोड़ी बहुत सच्चाई हो सकती है, किंतु प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार और देश की जनता के व्यापक हित में सरकार को हर हाल में और किसी के विरोध की परवाह किए बिना, नयी भारतीय न्याय संहिता बिल की तर्ज पर नयी “भारतीय दीवानी संहिता बिल” भी संसद में पेश करना चाहिए ताकि कानून बनने के बाद आम भारतीय जनता को दीवानी के मामलों में दशकों तक अदालतों के चक्कर नहीं लगाने पड़े और अपना कीमती समय और पैसा नष्ट नहीं करना पड़े | आदालतों में दीवानी के मामले में “तारीख पर तारीख” अब देश और नहीं चाहता है | आशा है की निकट भविष्य में भारत सरकार देश की जनता के व्यापक हित में नयी “भारतीय दीवानी संहिता बिल” अवश्य ही संसद में पेश करेगी|