नयी भारतीय दंड संहिता विधेयक – एक क्रांतिकारी कदम किंतु अभी और सुधार की जरूरत

देश के गृह मंत्री श्री अमित शाह ने अंग्रेजों के जमाने वाली भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) में क्रांतिकारी परिवर्तन करने के लिए उसके स्थान पर “भारतीय न्याय संहिता  बिल” संसद में जो विधायक पेश किया है वह एक बहुत ही अच्छा है और देश की करोडो जनता के व्यापक हित में है! उसी तरह से उन्होंने ने CRPC के स्थान पर “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता” और Indian Evidence Act के स्थान पर “भारतीय साक्ष्य बिल” संसद में पेश किया है! ये तीनो ही बिल न केवल समय की मांग थे बल्कि ऐसा बिल बहुत पहले ही लाया जाना चाहिए था! हालांकि सरकार ने इन तीनो बिलो के माध्यम से पुराने कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किया है, किंतु सरकार को अन्य महत्वपूर्ण विषयों को भी इसमें शामिल करना चाहिए, जैसे हर साल देश के विभिन्न कालेजों और विश्वविद्यालयों में रैंगिंग के मामले आते हैं जिसमें हजारों छात्रों को शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है कुछ छात्र तो आत्महत्या तक कर लेते हैं| कुछ मामलों में तो छात्रों को जान से मार दिया जाता है| यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है| और सरकार को चाहिए कि नयी भारतीय दंड संहिता में रैंगिंग को परिभाषित करें और यह प्रावधान करें की अगर रैंगिंग से किसी की मृत्यु होती है तो कानून में उसके लिए भी कम से कम 20 साल या मृत्युदंड की सजा का प्रावधान हो, साथ ही रैंगिंग के नाम पर किसी को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने पर कम से कम 3 साल या अधिकतम 7 साल की सजा का प्रावधान हो!

नयी भारतीय दंड संहिता में सरकार को हत्या के मामले में गवाह संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बदलाव करना चाहिए, क्योंकि कुछ मामलों में पेशेवर अपराधी अगर किसी की हत्या के मामले में आरोपित होते हैं तो उनके खिलाफ डर के कारण कोई गवाही देने की हिम्मत नहीं करता और कई मामलों में अगर कोई गवाही देता भी है तो उसको जान का खतरा बना रहता है| इसलिए सरकार को नयी दंड संहिता में में यह प्रावधान अवश्य करना चाहिए कि अगर हत्या के मामले में कोई गवाह नहीं मिलता है तो इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य या फॉरेंसिक साक्ष्य की सहायता से उस व्यक्ति को कानून के अंतर्गत सजा सुनिश्चित हो सके|

सरकार को त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए नयी दंड संहिता में यह प्रावधान करना चाहिए कि हत्या से संबंधित कोई भी मामला निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक ३  साल से ज्यादा ना चले, अर्थात 3 साल में पीड़ित को हर हाल में न्याय मिल सके| इसके लिए अगर सरकार को अदालतों की संख्या बढ़ाना हो या जजों की संख्या बढ़ाना हो तो बढ़ाएं किंतु पीड़ित व्यक्ति को जितना जल्दी हो सके न्याय मिलना चाहिए |

कुल मिलाकर भारतीय दंड संहिता में यह बदलाव एक क्रांतिकारी कदम है | अंग्रेजों के जमाने की भारतीय दंड संहिता जिसे अंग्रेजों ने अपने व्यापक हित के लिए बनाया था, उसमें वर्तमान परिपेक्ष में बदलाव होना ही चाहिए जिससे आम भारतीय जनता को न केवल न्याय मिल सके, बल्कि त्वरित न्याय भी मिले|  देश के गृह मंत्री माननीय श्री अमित शाह जी ने भारतीय दंड संहिता में क्रांतिकारी परिवर्तन करने के लिए अपने अथक परिश्रम से संसद में जो विधेयक पेश किया है उसके लिए भारत की जनता उनकी आभारी है और अगर यह विधेयक संसद में पास हो जाता है तो श्री मोदी जी की सरकार और श्री अमित शाह को को इसके लिए इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा |

 

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