हिन्दू राष्ट्र Vs. सेक्युलर राष्ट्र

सेक्युलर देश का मतलब ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ है, जो लोग यह कहते है कि कुछ लोग भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाना चाहते है उन्हें यह बताना चाहिए की मान लीजये अगर संबिधान में यह जोड़ दिया जाय कि ‘भारत एक हिन्दू राष्ट्र है’ तो उससे वर्तमान परिस्थिति और ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र है ‘ घोषित होने के बाद की परिस्थिति में क्या अंतर आएगा ? …. हाँ एक फर्क जरूर  आ सकता है कि हो सकता है किसंसद सत्र की शुरुवात राष्ट्रगान और सरस्वती बन्दना दोनों से शुरू हो क्योंकि सरस्वती बंदना तो भारतीय संस्कृति में हमेशा से कोई भी बौद्धिक कार्य करते समय होती है | इसलिए इसे यहाँ किसी खास पंथ विशेष से सम्बंधित नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति से सम्बंधित समझा जाना चाहिए | भारतीय संस्कृति यह मानती है कि जो भी भारत भूमि में पैदा हुआ वह भारतीय है चाहे उसकी उपासना पद्धिति कुछ भी हो | भारतीय संस्कृति सबको बराबर मानती है न कोई कम और न कोई ज्यादा | 

जो लोग ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द से चिढ़ते है वे हिन्दू धर्म को पाकिस्तान के राष्ट्रीय धर्म जैसा समझते है जहां अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह नहीं है | आजादी के समय पाकिस्तान में हिन्दुओ की आबादी १०% थी वहीं अब घटकर १% से भी कम रह गयी है | हिन्दू /भारतीय संस्कृति में सबके लिए जगह है , यहाँ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की संस्कृति है और यहाँ प्राणी मात्र पर दया की जाती है |  भारतीय की संस्कृति गंगा-जमुनी संस्कृति नहीं, बल्कि केवल गंगा है जिसमें सबके लिए स्थान है, जैसे हजारों नदियां अपना पृथक अस्तित्व रखते हुए भी अंत में गंगा में ही मिल जाती है | आप चाहे ईश्वर को माने या न माने, मूर्ति पूजा को माने या न माने, तब भी आप हिन्दू ही हैं, तो तो भला हिंदुत्व में किसका स्थान नहीं है? यहाँ एक सत्य को स्वीकार करना होगा की आज से लगभग २५०० साल पहले सबके पूर्वज हिन्दू ही थे और पंथ बदलने से सभ्यता और संस्कृति नहीं बदलती! इस मामले में हमें मुस्लिम देश इंडोनेशिया से सीखना चाहिए जो मुस्लिम देश होने के बाद भी हिन्दू संस्कृति को मनाता है और जहाँ आज भी रामलीला होती है |

आज भारत सेक्युलर है तो इसका कारण ही है कि यहाँ हिन्दू बहुसंख्यक है , अन्यथा कश्मीर घाटी और जम्मू का उदहारण हमारे सामने है, घाटी को जहाँ हिन्दुओ से विहीन कर दिया गया जब की हिन्दू बहुल जम्मू में सब धर्मो के लोग प्रेम से रहते हैं ! कृपा करके हिन्दू धर्म को अन्य धर्म के समान न समझने को भूल न करे , वास्तव में यह कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति है|

 वास्तव में भारतवर्ष में सेकुलरिज्म या पंथनिरपेक्षता की अवधारणा ही गलत है क्योकि भारत अपने स्वाभाव से ही सेक्युलर या पंथनिरपेक्ष है | ऐसे में भारत के संबिधान में अगर “सेक्युलर”  शब्द नहीं भी होता तब भी भारत पंथनिरपेक्ष ही होता! क्या जब संबिधान में संशोधन करके सन १९७६ जब सेक्युलर शब्द जोड़ा गया तो क्या उसके पहले भारत सेक्युलर या पंथनिरपेक्ष नहीं था? आखिर संबिधान में सेक्युलर शब्द जोड़ने की आवश्यकता ही क्या थी? क्या देश में मजहब में नाम पर लोगो में भेदभाव हो रहा था जिसके कारण संबिधान में संशोधन करना पड़ा और उसमे सेक्युलर शब्द जोड़ना पड़ा!
 
अगर भारत में विदेशी आक्रमणकारियों या कुछ गैर हिन्दू शासको को छोड़ दिया जाय तो किसी भी भारतीय शासक ने मजहब में नाम पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया | इतिहास गवाह है  कि अंग्रेजो के आने के पहले भारतीय राजा सभी मजहब के लोगों  के साथ सामान व्यहार करते थे! यहाँ तक की छत्रपति शिवजी महाराज और महाराणा प्रताप की सेना में कई मुस्लिम भी थे | इससे ये सिद्ध होता है की भारत में प्राचीन काल में भी मजहब में नाम पर कभी भी  भेद-भाव नहीं होता था और सबके लिए एक सामान कानून था तो ऐसे में भारत में सेकुलरिज्म पर बहस का कोई औचित्य ही नहीं है | भारतीय संस्कृति में यह माना जाता है की सभी मजहब सच्चे और अच्छे है और ईश्वर के पास पहुंचने के मार्ग हैं | 

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