मैं भी महान कवि हूँ! ( ब्यंग्य )

प्रसिद्ध कवि बनना कौन नहीं चाहता, मैं भी चाहता हूँ लेकिन क्या करू मुझे कई वातो को तोड़ मरोड़ कर और उन्हें  आपस  मिलाकर कविता बनाना नहीं आता और संयोग से  अगर बन भी गयी तो उसे कोई सुनने वाला तो मिलने से रहा !वह समय तो अब चला गया जब जयशंकर प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा और रामधारी सिंह दिनकर जैसे  लोग अपना पूरा समय ही व्याकरण सम्मत काव्य की रचना करने में विताते थे ! महान  कवि गिरधर की काव्य रचना ‘कुण्डलिया’ को ही देख लीजिये, व्याकरण के अनुसार कुण्डलिया ६ लाइनों को होती हैं और जिस शब्द से शुरू होती हैं उसी शब्द से ख़त्म भी होती हैं, जैसे – प्रथम लाइन ” बीती ताहि विसारि दे, आगे की सुधि लेइ” और अंतिम क्षठी लाइन है ” आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती ” ! यहाँ शुरू का शब्द “बीती” है और आखिरी  क्षठी लाइन का अंतिम शब्द भी “बीती ” है ! लेकिन आज कल लोगो के पास इतना समय कहाँ है कि कोई दिन रात सालो तक  व्याकरण सम्मत  काव्य की रचना ही करता रहे, तो क्या करे कुछ लोगो ने  इसका भी  आसान रास्ता निकल लिया !
अब काव्य में मात्रा और व्याकरण की बात कौन करे अब जो मन करे वही शब्द जोड़कर तुकबंदी से दो चार लाइन बना लीजिये बस सुनाने में अच्छा लगाना चाहिए, भावार्थ उसका कुछ भी हो,  किन्तु अगर श्रोताओ की ताली बज गयी तो समझिये की आप एक महान कवि हो गए ! भले ही उसे न दोहा कहा जा सके, न चौपाई और न ही क्षंद !अगर कबि जी को किसी इंजीनियरिंग कॉलेज से अपनी काव्य पाठ पढ़ने का बुलावा आ जाये तो समझिये की उनके तो  भाग्य ही  खुल गए ! अब उनका रातो रात लोकप्रिय होना निश्चित है बस वे श्रृंगार रस की कुछ कविताये छात्रों के सामने जरूर पढ़े, इससे कई मिनटों तक  तालिया तो बजेंगी ही बल्कि वे रातो-रात स्टार कवि भी बन जायेंगे! Facebook और Twitter पर उनके फॉलोवर्स की संख्या जल्दी ही लाखो में हो जाएगी, Youtube पर उनके काव्य पाठ वीडियो के लाखो देखने वाले हो जायेंगे और तब Youtube से भी अच्छी खासी कमाई होने लगेगी !
इसे काव्यात्मक साहित्य जगत का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जायेगा जब सिर्फ श्रोताओं द्वारा ताली बजने को ही बड़ा कवि होने  का एकमात्र पैमाना मान लिए जाता है, भले ही कथित कविता फूहड़ ही क्यों न हो! आज आवश्यकता इस बात की है कि  साहित्य और साहित्यकारों के हित में उच्च स्तर की कविताओं की बढ़ावा दिया जाय | मीडिया की भी ये जिम्मेदारी है कि सस्ती लोकप्रियता के लिए फूहड़ और गैर व्याकरण सम्मत कविताको को ज्यादा बढ़ावा न देकर उच्च स्तर की कविताओं और उनके साहित्यकारों को ही बढ़ावा दे |  भले ही तालियां कम बजे किन्तु इससे साहित्य जगत का ही भला होगा!
आज देश में कई ऐसे उच्च स्तर के साहित्यकार है जिन्हे ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं | किन्तु जो लोग एक बार मीडिया में बस दिखाई दे दिए वे रातों-रात महान कवि बन जाते है बस उन्हें श्रोताओं की तालियां मिलनी चाहिए भले ही उनकी कविता का स्तर निम्न ही क्यों न हो!

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